श्री श्री: जब कर्तव्य को प्रेम से करते हैं तो बोझ नहीं लगता। कभी कभी आप सिर में दर्द महसूस करते हो क्युकि आपको कर्त्तव्य बोझ लगता है| यदि आप कुछ प्रेम से करते हो तो वह उत्तम है| जब आप कोई जिम्मेदारी प्रेम से लेते हैं तो वह आपके लिए बोझ नहीं रहती| वह पूजा के जैसे हो जाती है और वह उत्तम है| यदि आप पूजा को ही कर्त्तव्य समझने लगते हैं तो उसे करने से कोई लाभ नहीं हैं| वो प्रेम का भाव ज़रुरी है।
यदि कोई पिता सोचे कि मुझे अपनी बेटी की शादी करनी हैं और किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा मिले तो फिर वह बोझ बन जाता हैं| परन्तु यदि वह उसकी शादी को प्रेम से लेता है तो फिर सारा कार्यक्रम उत्सव बन जाता हैं और सबको प्रसन्नता होती है| इसलिए ज़िम्मेदारी को प्रेम से लीजिए और सारे विश्व की जिम्मेदारी लिजिये| छोटे कदम के साथ शुरू करें | पहेले अपना परिवार, पडोसी, समाज, गाँव – आपके गाँव में किसी को दुखी नहीं होना चाहिए! ऐसे दृष्टिकोण से आपका दिल खिल उठेगा |
<3 और जब जब दिल खिलता है तो वहाँ पर खुशहाली होती है| ईश्वर खिले हुए दिल में वास करते हैं| आपको कही जाकर ईश्वर को खोजने की आवश्यता नहीं हैं| उनका निवास आपका दिल है|