मानव के स्वास्थ्य को यथावत बनाए रखने एवं बीमार पड़ने पर रोग से छुटकारा दिलाने के लिए के लिए प्राचीन आयुर्वेद के मनीषियों द्वारा निरंतर नई-नई भेषज कल्पनाओं का प्रादुर्भाव किया गया । उन्हीं कल्पनाओं का अनुसरण कर विभिन्न आयुर्वेदिक भेषज निर्माणशालाएं विभिन्न औषध योगों का निर्माण कर जनता जनार्दन को परोस रही हैं ।
भेषज निर्माण की कुछ प्राचीन कल्पनाओं यथा क्वाथ एवं स्वरस आदि को ताजा बनाकर रोगी को सेवन कराए जाने का वर्णन प्राचीन संहिता ग्रंथों में उपलब्ध होता है । वर्तमान समय में आज उन्हीं भेषज कल्पनाओं में कुछ प्रतिशत आधुनिकता का मिश्रण कर जनता की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है । जिसका लाभ जनता को प्राप्त हो रहा है । लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि भेषज निर्माणशालाओं द्वारा क्वाथ / स्वरस को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए उपयोग में लाए जा रहे रसायनों का प्रयोग मानव जीवन में कितना घातक हो सकता है ।
खाद्य पदार्थों तथा क्वाथ / स्वरस को संरक्षित करने ( लंबे समय तक खराब होने से बचाए रखने ) के लिए दो तरह के रसायनों का प्रयोग वर्तमान में किया जा रहा है ---
1 -- Methyl Paraben Sodium
2 -- Propyl Paraben Sodium
हालांकि आधुनिकीकरण के चलते बहुत कुछ सुविधाजनक स्थितियों की भी उपलब्धता की प्राप्ति हुई है लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी और अधिक प्रसंस्करण की आवश्यकता है ।
आजकल बाजार में विभिन्न दवा निर्माताओं द्वारा कई तरह के फल पत्ती एवं सब्जियों के स्वरस सीलबंद कर उपलब्ध कराए जा रहे हैं । लेकिन क्या वह पूरी तरह से स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभकारी हो सकते हैं ❓ क्या कभी आपने इस बात पर विचार किया है ❓
" आवश्यकता आविष्कार की जननी है "
इस कथन को झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि समय के कालचक्र को दृष्टिगत रखते हुए जब जैसी आवश्यकता महसूस हुई तब-तब नए-नए प्रयोग होते गए और प्रगति तथा उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते गए ।
इसी कड़ी में, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
" अथक परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता वरन फलित होकर हर्ष की प्राप्ति कराता है "
पूर्व के आचार्यों ने भी " अल्पमात्रोपयोगी एवं आशुकारी " गुणों से परिपूर्ण तथा लंबे समय तक खराब न होने वाली परिकल्पनाओं को विकसित किया था , जिनमें आसव-अरिष्ट कल्पना तथा रस-रसायन कल्पना प्रमुख हैं ।
निरंतर हुए विकास के क्रम में, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, Dry Extract का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है । इस सब के पीछे मनन करने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है कि औषधि का प्रभाव मानव शरीर पर द्रुत गति से हो ताकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के मकड़जाल से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जा सके ।
आजकल बाजार में तमाम Herbal Dry Extract जैसे --- नीम , तुलसी , घृतकुमारी , हल्दी , करेला , अश्वगंधा आदि आदि के Tablet / Capsule प्राप्त किए जा सकते हैं ।
कड़ी मेहनत और पूर्ण मनोयोग से किए गए कार्य में विलंब हो सकता है लेकिन असफलता नहीं ।
और अंततः सफल हुआ प्रयास, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,।
आज पूरी तरह से Natural एवं अप्राकृतिक रसायनों से मुक्त वानस्पतिक तरल सत्व बनाने में सफलता प्राप्त कर मन में हर्ष की अनुभूति हो रही है । अभी खासकर उन विशेष द्रव्यों ( जिनका वर्तमान में अधिक प्रचलन है ) यथा ---
गोखरू ,
कालमेघ ,
शंखपुष्पी ,
पथरचट्टा ,
सफेद मूसली ,
गुड़मार ,
अर्जुन ,
भूम्यामलकी ,
सहजन ,
घृतकुमारी ,
चिरायता ,
जामुन ,
कासनी ,
अशोक ,
गिलोय ,
हल्दी ,
ब्राह्मी ,
शतावर ,
सर्पगंधा ,
करेला ,
अल्फा-अल्फा ,
तुलसी ,
लहसुन ,
जिनसेंग ,
नीम ,
मेथी ,
अजवाइन ,
सदाबहार ,
अश्वगंधा ,
आल ,
आंवला ,
हरी चाय ,
शिलाजीत ,
पनीर फूल ,
त्रिफला आदि के तरल सत्व निकाल कर प्रयोग किए गए । जिनका भेषजीय प्रभाव Dry Extract की अपेक्षा दस से पंद्रह गुना अधिक पाया गया ।
स्वयं के द्वारा दैनिक व्यवहार में प्रयोग किए गए वानस्पतिक तरल सत्वों एवं रुग्ण व्यक्तियों की अनुभूतियों के मिश्रण से अपना अनुभव और प्रगाढ़ होता गया और आज इसी का परिणाम है कि अन्यों की अपेक्षा कठिन तथा जटिल कहे जाने वाले रोगों में भी उत्तरोत्तर सरलता होती गई ।
हम इस विषय पर एक मिशन की तरह कार्य कर रहे हैं । मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि आप हमारे मिशन में शामिल होकर अधिकाधिक रुग्ण समाज का हित करने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे ।
अनुभूतियाँ, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वर्तमान समय में मधुमेह , थायरॉइड , ब्लड प्रेशर आदि आदि विभिन्न बीमारियाँ दिनों-दिन अपने पैर पसार रही हैं । जबकि उत्तरोत्तर उसी गति से स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं लेकिन हेल्थ के सेक्टर में रुग्ण व्यक्तियों की संख्या दिनों-दिन फिर भी अवाध गति से एक सैलाब की तरह बढ़ रहे हैं , विभिन्न विकल्प निष्प्रभावी होते जा रहे हैं बावजूद इसके इन वानस्पतिक तरल सत्वों के द्वारा मानव का बहुत उपकार हुआ है ।
थायरॉइड चाहे हाइपर हो या हाइपो , दोनों अवस्थाओं को सामान्य अवस्था में लाने के लिए अपना विशेष अनुभव रहा है ।
मधुमेह ```से पीड़ित तमाम जन समुदाय की सहायता करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वे रोग मुक्त होकर जीवन यापन कर रहे हैं । यहां यह आवश्यक नहीं कि बीमारी टाइप वन है या टाइप टू । कारक की विकृति दूर होते ही तंत्र यथावत कार्य करने लगता है और मनुष्य सानंद जीवन यापन करने लगता है ।