बदलते वक़्त के साथ ,रिश्तों को बदलते देखा
आड़े वक़्त में पाले यूं , लोगों को बदलते देखा |
उठते ही माँ -बाप का साया,सचाई सामने आई
जहर भरा था दिलों में ,बच्चों को उगलते देखा |
प्रेम- भाईचारे की दी जाती थी उनकी मिसाल
समय बदला वो बदले ,खूब उनको झगड़ते देखा |
अपने पद और पैसे का उन्हें बहुत अहंकार था
वक़्त यूं पलटा, पैसे पैसे का मोहताज़ होते देखा |
कई अर्श से फर्श पर कई फर्श से पहुंचे अर्श पर
मुकद्दर के इस अज़ब खेल को होते हवाते देखा |
सपने में भी सोचा न था देगा यूं धोखा एक दिन
बहकावे में आ,खंज़र पीठ में,उसको घूंपाते देखा |
पर्यावरण से कर रहा इन्सान निरंतर छेड़खानी
हालांकि इसने रह रह ,कुदरत को बिफरते देखा |
सच पूछो तो अब दुनिया ,रहने के काबिल नहीं
जिगरी खूनी रिश्ते नातों को ,टूटते बिखरते देखा |
दहशतगर्दी, गुंडागर्दी, हवस, बलात्कार चरम पर
देश दुनिया की अचानक,फिजां को बदलते देखा |
पैसे का यूं अब बोलबाला पूजा उसी ही की हो रही
पैसे के आगे बड़ों बड़ों के,ईमान को फिसलते देखा |
सच्चों शरीफों ईमानदारों को कष्ट झेलने पड़ रहे
झूठों मक्कारों गुंडों दबंगों को,फलते- फूलते देखा |
सुख सुविधा के साधन बढ़े,कोठियां बनीं आईं कारें
खुशी की तलाश में फिर भी लोगों को,भटकते देखा |
रह रह के याद आता रहता वो गुजरा हुआ जमाना
हाथ एक दुसरे का जरूरत में,लोगों को बंटाते देखा |
गम और खुशी में हो जाता था गाँव ही तब इक्कट्ठा
धीरे धीरे ख़ास दायरों में ही, लोगों को सिमटते देखा |
देखा वो भी इक जमाना,रहा देख 'शर्मा' ये भी अब
शहरों की चकाचौंध में, रूतबा गाँवों का घटते देखा |