एक गीत मेरी कृति गीत गंगोत्री से,,,,! 

एक गीत मेरी कृति गीत गंगोत्री से,,,,!


रहा मनुज का इस धरती पर, 
अपना कर्म प्रधान ।
राजा हो या रंक सभी के,
संग रहता भगवान ।
सुनो जी, यह गीता का ज्ञान ।


जो बोया, फल मिले उसी का,
नीति यही नटवर की ।
चाहें रावण को देखें! या, 
बात करें रघुवर की ।
रोज यहाँ पर उगकर ढलता, 
सदियों से दिनमान ।
सुनो जी, यह गीता का ज्ञान ।


रोक न पायी धूप कभी भी,
कलियों को खिलने से । 
और तिमिर भी रोक न पाया, 
भँवरों को मिलने से ।
कर्मरथी को सदा मिला है, 
लक्ष्यों का संधान । 
सुनो जी, यह गीता का ज्ञान ।


जीवनपथ के कर्मयज्ञ में, 
आहुति सिर्फ समर्पण ।
कर्तव्यों की बलिवेदी पर,
इच्छाओं का अर्पण ।
निश्छल मन से काया कर लो, 
साधक का प्रतिमान ।
सुनो जी, यह गीता का ज्ञान ।
#अनुपम_आलोक