एनआरसी

अब जबकि #एनआरसी लागू होने जा रहा है आप समझ गये होंगे कि तीन महीने पहले अचानक लिखी इस पोस्ट का मतलब क्या था? 


#पंडे


'पंडा' शब्द आते ही हमारे मस्तिष्क में एक नकारात्मक छवि आने लगती है। मंदिरों नदियों के घाट पर बैठे शिखाधारी, चंदनचर्चित मस्तक और कांइयां मुस्कान लिये धोतीधारी, तुंदिल व्यक्ति जो आपके कपड़े तक उतारने के लिये तत्पर हैं। 
अस्तु!


पुरी, प्रयाग और बनारस में ऐसे बहुत से हैं भी।  
लेकिन यह चित्रण भी एकांगी ही है। 


इसका एक दूसरा पहलू भी है। 


-ये पंडे आपके और आपके पूर्वजों के बीच की कड़ी हैं। 
-ये पंडे वंशानुगत रूप से आपकी पहचान के रखवाले हैं। 
-ये पंडे इतिहास के पहरेदार भी हैं। 


ये पंडे सहस्त्रों वर्षों से आपके पूर्वजों, उनकी शाखाओं, प्रशाखाओं का पूरा विवरण दर्ज करते आये हैं। 


 जब रोमिला और हवीब, अबुल फजल और बर्नी, कल्हण और चंद सुल्तानों, बादशाहों, राजाओं व सम्राटों की वंशावलियाँ लिख रहे थे तब ये पंडे थोड़े से सीदे के बदले आपके नामालूम और अकिंचन से पुरखों के नाम अपनी बहियों में दर्ज कर उन्हें सम्राटों का रुतबा बख़्श रहे थे।


इन्हीं पंडों के दर्ज इतिहास के बलबूते देवेंद्र सिकरवार जैसे लाखों अकिंचन लोगों ने  प्रमाणपूर्वक सगर्व  श्रीराम और सूर्यवंश से अपना रक्तसंबंध की घोषणा की थी। 


कलयुग आया, जिजमान बदले, उनके विचार बदले। पूर्वजों के निमित्त बनारस, गया और सोरों के कर्मकांड  पिछड़ेपन की निशानी बन गये और 'पंडा' शब्द तिरस्कार का पर्याय बन गया। निःसंदेह आधुनिक पीढ़ी के पंडे खासतौर पर प्रसिद्ध मंदिरों व घाटों के पंडे इसके लिये जिम्मेदार भी हैं लेकिन इस बदनामी का सारा बोझ उठाया उन पंडों ने भी जो आज भी आपकी विरासत को अपने सिर पर ढोये घूमते हैं। 


मेरी माँ के अस्थि विसर्जन के लिये हमारे पंडे ने जब बीस हजार मांगे तो मुझे क्रोध और खीज हो आई लेकिन जब उन्होंने पोथियों से भरे संदूकों और अटी पड़ी अटारियों में से मेरे पूर्वजों के नाम बताने शुरू किये तो गर्वानुभूति के साथ अपने क्रोध पर लज्जित हो उठा। मेरे पराक्रमी पूर्वजों ने जिस उदारतापूर्वक इन पंडों का संरक्षण किया उससे उनकी दूरदृष्टि के समक्ष मेरी प्रगतिशीलता बौनी हो उठी थी। 


मैंने पंडाजी के पुत्र को सारी बहियों को  डिजिटलाइज करने का सुझाव दिया जिसे उन्होंने खुले मन के साथ स्वीकार किया। 


मैं लौटा एक चिंता के साथ कि क्या होगा अगर धन और बेहतर जीवन के लिये पंडों की नई पीढ़ी ने इस काम को त्याग दिया? 


आप सालों में एकआध बार इन पंडों द्वारा तथाकथित आर्थिक ज्यादतियों का शिकार होते हैं लेकिन इन्हीं में से एक वर्ग द्वारा आपकी पहचान भी सुरक्षित रखी जा रही है, आपकी भावी पीढ़ियों को आपसे परिचित कराने हेतु। 


उनके हाथों में आपके इतिहास की कुंजी है, और अब उनके हाथों में तुम्हारी नागरिकता की चाबी भी है, 


उनका सम्मान करो।


और अब  #एनआरसी के संदर्भ में एक यक्षप्रश्न--


हमारे पास तो पंडे हैं विदेशी म्लेच्छो, तुम्हारे पास क्या है?


😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂