*🔥 ओ३म् 🔥*
*_क्या श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे?_*
अन्य भ्रान्तियों की भांति ही मनुष्यों को एक यह भी भ्रांति है कि श्रीराम ने शबरी के अतिथि सत्कार में झूठे बेर खाये थे, परन्तु यह बात वाल्मीकि रामायण के विरुद्ध तुलसी रामायण में लिखी है। जब श्रीराम शबरी के आश्रम पर पहुँचे तो उसने शिष्टाचार के नाते श्रीराम का पाद्य अर्घ्य द्वारा सत्कार किया और बोली―
*मया तु संचितं वन्यं विविधं पुरुषर्षभ।*
*तवार्थे पुरुषं व्याघ्रं पम्पा या स्तीर सम्भवम्।।*
अर्थात् _हे राम ! मैंने आपके लिये पम्पा सरोवर पर उत्पन्न हुए वन फल इकट्ठे किये हैं ग्रहण कीजिये।_
इस पद में बेर की कहीं चर्चा नहीं है। यह कोरी गप्प है। झूठे बेर खाने और खिलाने में शबरी और श्रीराम दोनों ही बदनाम होते हैं। क्योंकि भारतीय परम्परा में ऐसा व्यवहार कहीं नहीं देखा गया। यहाँ परम शुद्धता के साथ आतिथ्य किया जाता है।
अब बेर का छोटा सा प्रमाण लीजिये। हमारे यहाँ अर्थात् भारतवर्ष में बेर माघ मास में कुछ-कुछ पकने आरम्भ हो जाते हैं। और होली से पूर्व फाल्गुन में समाप्त हो जाते हैं। कहीं-कहीं चैत्र तक चलते हैं, श्रीराम और शबरी की भेंट वैशाख के अन्त में या ज्येष्ठ मास के प्रारम्भ में हुई थी, बतलाएं उन दिनों बेर कहाँ थे, जो राम को खिला दिये।