ए री सखी चल वृंदावन की ओर,
जहाँ विराजे राधा रानी संग माधव माखन चोर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर...
मेरो मन वेणु हो धावे कित है वृज रस मोर,
मैं वायु हो उड़ उड़ जाऊँ,कैसो पाऊँ वृंदावन रज को ठौर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर...
नव नित माखन मिश्री ले राखूं,क्यों न आये तुम चित चोर,
गागर भरन नित यमुनो तट जाऊँ,काहे न कंकरीया मारो हो नवलकिशोर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर...
चँदन,केसर को लेप बनाऊँ,नित नव कुसमों की सेज बिछाऊँ...
क्यूं न विनती सुनो हो नंदकिशोर,कहाँ खोये हो सिरमोर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर....
कोयल,मैना पिया पिया बोरे,मेघा गरजे घनघोर,
धवल धाम पियो हियो गगन माहि,नैना नीर बरसावें बरजोर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर....
मैं दासी,मेरो पिया रंगरेज़ो,रंग दीन्हीं चहु ओर,
मैं भौरी मुझे पथ नहीं सुझे,कैसे मिलूं तोहे रणछौर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर....
बांबरी होये मैं वन वन भटकूं,अरज करुं तन मन सब अर्पूं,
मोहे दासी राखो निज ठौर,मीरो करहीं निहोर,भवबंधन सों उबारो हे रसिककिशोर,
ए री सखी चल वृंदावन की ओर....